Tuesday, 5 January 2016

BE A MAN SAY NO TO DOWRY!

BE A MAN SAY NO TO DOWRY!
ना ले,ना लेने दे 



दहेज भारतीय समाज के लिये अभिशाप है 1 दहेज ने हमारी सांस्क्रितिक सांस्कृतिक एवम सामाजिक व्यवस्था को खराब कर दिया है 1 दहेज की कुप्रथा के कारण नारी सामाजिक तिरस्कार, तलाक और आत्महत्या की ओर बढ रही है 1 शिक्षा के प्रसार का भी दहेज की मनोवृति पर कोई अछा प्रभाव नही पड़ा है ! क्योंकि जो युवक जितना अधिक शिक्षित होत है उस की दहेज की मांग भी उतनी ही अधिक होती है ! एक तरह से वर की बोली लगाई जाती है ! इस प्रथा से तंग आ कर नारी अपने जीवन को ही अभिशाप मानने लगी है !
दहेज प्रथा का प्रचलन नव-विवाहित जोड़े को नई गृहस्थी शुरु करने मे थोड़ी सी मदद के रूप मे शुरु हुआ था ! लेकिन बाद मे दहेज की सात्विक भावना तामसिक हो गई ! जैंसे कि दहेज के अभाव में कन्या से विवाह करने से मना करना, दहेज की कमियों को गिन गिन कर बताना, सास और ननद का नई बहू को ताने मारना इत्यादि ! कभी कभी तो दहेज प्रथा इतना क्रूढ रूप धारण कर लेती है कि ससुराल वाले बहू को, या तो आत्म-हत्या करने पर मज्बूर कर देते है, या उसे विष देकर, या जलाकर, या गला घोंट कर मार देते हैं ! इस तरह दहेज प्रथा भारतीय समाज पर बहुत बड़ा कलंक है !
दहेज के इस दीमक को जन-जागरण द्वारा ही नष्ट किया जा सकता है ! इस के निवारण के लिये सरकार ने बहुत सख्त कानून बनाये हैं, ताकि लालची लोगों को कानून का भय हो ! आज की युवा पीढी भी अपनी संकल्प शक्ति से दहेज प्रथा को समाप्त कर सकती है ! क्योंकि नारी नवपीढी की जननी है, अतएव उसका आदर, सम्मान आवश्यक है !

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